स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर टीवी चैनलों पर अक्सर भारत-पाकिस्तान युद्ध पर आधारित फिल्में दिखाई जाती हैं। यह सवाल उठता है कि जब भारत ने 1947 में अंग्रेजों से आजादी हासिल की थी, तो इन खास मौकों पर पाकिस्तान से जुड़े युद्धों की फिल्में क्यों प्रसारित की जाती हैं।
भारत और पाकिस्तान का विभाजन 1947 में हुआ था, जिसने दोनों देशों के बीच गहरे सामाजिक और सांस्कृतिक विभाजन को जन्म दिया। आजादी के बाद भी, 1947, 1965, 1971 और 1999 में दोनों देशों के बीच युद्ध हुए। इन युद्धों पर आधारित फिल्में राष्ट्रीयता की भावना को जाग्रत करती हैं और दर्शकों को उन सैनिकों के बलिदान की याद दिलाती हैं जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए।
मनोरंजन उद्योग के लिए, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस सबसे अधिक दर्शकों को आकर्षित करने के मौके होते हैं। “बॉर्डर,” “एलओसी कारगिल,” “उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक” जैसी फिल्में दर्शकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हैं, और इन्हें खासतौर पर ऐसे मौकों पर प्रसारित किया जाता है।
हालांकि, सवाल यह उठता है कि क्या हमें इन राष्ट्रीय पर्वों का जश्न केवल युद्ध की कहानियों के साथ मनाना चाहिए, या फिर उन कहानियों और नायकों को भी सामने लाना चाहिए जिन्होंने देश को आजादी दिलाई और उसे एक गणराज्य के रूप में स्थापित किया।
स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस केवल उत्सव के दिन नहीं हैं, बल्कि यह समय आत्मनिरीक्षण और भविष्य की दिशा तय करने का भी है। राष्ट्रभक्ति केवल युद्धों की जीत में नहीं, बल्कि उन आदर्शों और मूल्यों में भी निहित है जिन्होंने भारत को एक स्वतंत्र और गणराज्य के रूप में स्थापित किया।